21/6/06

इशक होता नही सभी के लिए


इशक होता नही सभी के लिए,
ये बना है किसी-किसी के लिए,
कोई महबूब लाजमी नही आशिकी के लिए,
महबूब का खयाल ही काफी है शायरी के लिए,
उस खयाल को किसी रूह या सुरत की जरूरत नही होती,
हम आँखें मूंद लेते है महबूब के दिदार के लिए।


प्रवीण परिहार

15/6/06

मैं और उसकी मोहब्बत




ये मौहब्बत की कहानी है उस लडकी की, जिसने कभी अपनी मौहब्बत का इज़ाहार नही किया। करती भी कैसे लडकी जो थी। नसीब देखीए उस लडके ने भी कभी उस लडकी के जज़्बातों पर गोर नही किया। एक दिन उस लडकी की शादी हो गयी, पर आज भी वो लडकी कभी-कभी ये सोचती है कि काश ऐसा न हुआ होता।

मैं और उसकी मौहब्बत

मेरे नसीब में उसकी मौहब्बत नही थी,
या मेरी मौहब्बत में इतनी चाहत नही थी,
मेरे हर ख्वाब क्या केवल ख्वाब ही थे
या मेरी जिन्दगी, जिन्दगी नही थी।

मैं आज भी तन्हाई में ये सोचती हूँ,
गर ये वक्त मेरी मौहब्बत का साथ देता,
मेरी नज़रो ने मेरे दिल का हाल कहा होता,
तो यकिनन वो मेरी आँखों में
मेरी मौहब्बत पहचान लेता।

मेरी जिन्दगी आज कुछ और होती,
गर वो मेरी मौहब्बत पहचान लेता,
अच्छा हुआ जो आँसुओं के रंग नही होते
वरना ये जमाना मेरी डोली पर,
मेरे अश्को से उसे पहचान लेता।

प्रवीण परिहार





(This is about a Girl who loves a boy but can't tell him. How she can? After all she is a girl. That boy never notice this. Now she got married but still sometime, she remember her past and She thinks ... ).

Main Aur Uski Mohabbat

Mere nasib mein uski mohabbat nahi thi,
Ya meri mohobaat mein itni chahat nahi thi,
Mere har khuab kya sirf khuab hi the,
Ya Meri jindagi shayad jindagi hi nahi thi .

Mein aaj bhi tanhaai mein ye sochti hun,
Gar ye waqt meri mohobat ka saath deta,
Gar meri nazoro ne mere dil ka hal kaha hota,
To yakinan wow meri aankhon mein hi,
Meri mohobabt ko pehchan leta .

Meri jindagi aaj kuchh aur hoti,
gar wow meri mohabbat pahchan leta,
achha hua jo asuno ke rang nahi hote,
varna ye jamana meri doli per,
mere ashko se use pahechan leta.


Praveen Parihar

9/6/06

प्रियवर तुम अब घर आ जाओ।


नारी चरित्र सदैव से ही कवियों और लेखको का प्रिय विषय रहा है, मेरा भी। अपनी इस कविता के माध्यम से मैं उस नारी के बिताए, उन चौदह वर्षो के कठिन समय का वर्णन करना चाहता हूँ, जो उन्होने अपने पति से दूर व्यतित किए। ये आदरणीय नारी थी, भगवान श्री राम के अनुज लक्ष्मण जी की धर्मपत्नि उर्मीला जी।

प्रियवर तुम अब घर आ जाओ।

मेरा जीवन कुछ नही है
केवल इक ठण्डी प्यास है
इस कडकती सरद में केवल
तेरी आंस की आँच है।

जेठ माह का हर दिन मुझे
यहाँ देखकर यूँ है चकित
उसके दोपहर की धुप से
अधिक मेरे ह्दय की ताप है।

कुछ न पुछो मेरे सावन
कैसे है तुम बिन ये साजन
कुछ ही बरसे है गगन से
शेष मेरी आँखों मे हैं।

मेरे बसंत के हर पुष्प ने
काँटों से है श्रृंगार किया
फागुन के हर इक रंग ने
मेरे अशुरो में है स्नान किया।

प्रत्येक वर्ष में चार ऋतुऐं
शरद, गीष्म, बसन्त और पतझड़
मेरे इन चौदह वर्षो में
एक ऋतु केवल पतझड़।

इस पतझड़ के परिवर्तन को
प्रियवर तुम अब घर आ जाओ
इन ऋतुओ के परिवर्तन को
मेरे प्रियवर तुम अब घर आ जाओ।

मेरे प्रियवर तुम अब घर आ जाओ।
मेरे प्रियवर तुम अब घर आ जाओ।

प्रवीण परिहार


This is about the feeling of Urmila ji (wife of yonger brother of Lord RAMA, LAXMAN).How she spend her 14 years in waiting for her husband. How she spend her every season.


Priyvar tum ab ghar aa jao.

Mera jivan kuchh nahi hai
keval ek thandi pyas hai
es kadkti sard mein keval
teri aans ki aanch hai

Jeth mah ka hur din mujhe
yanha dekh kar yu hai chakit
uske dopaher ki dhop se adhik
mere hirdye ki taap hai

Kuch na puchho mere sawan
kaise hai tum bin ye sajan
kuch hi barae hai gagan se
shesh meri aankho mein hai

Mere basant ke hur pushp ne
kanton se shringar kiya
fagun ke har ek rang ne
mere ashro mein snnan kiya

Pratyek varsh mein char rituae
shard,grishm, basant aur Patjhad
mere in chodha varsho mein
ek ritu hai kevel patjhad

Is patjhad ke parivartan ko
priyvar tum ab ghar aa jao
in rituo ke parivartan ko
priyvar tum ab ghar aa jao.


Priyvar tum ab ghar aa jao.
Priyvar tum ab ghar aa jao.

Praveen Parihar