3/9/07

राधा मेरा प्रथम प्रेम



राधा मेरा प्रथम प्रेम सही पर
अर्धांग्नी मेरी तुम हो प्रिय
राधा मेरा आत्मप्रेम सही पर
मेरे ह्र्दय में तेरा वास प्रिय।

राधा मेरी इच्छा थी पर
अब धर्म मेरा केवल तुम हो
राधा मेरा स्वपन सही पर
वास्तविक्ता मेरी तुम हो।

तेरी ईर्षा निराधार नही पर
अब न कुछ मेरे बस में है
राधा को मेरे स्वप्नो में तो
प्रिय अब तुम रहने दो।

प्रिय अब तुम रहने दो।।
प्रवीण परिहार