11/6/07

लम्हें

कभी-कभी जिन्दगीं के कुछ लम्हें,
यादों के गलियारों से गुजरते हुऐ,
वर्तमान के कक्ष में ऐसी महक फेला देते है जिससे,
वर्तमान ही नही भविष्य भी सुग्धिंत हो जाता है।

प्रवीण परिहार