7/7/06
कौन है गालिब ?
यह आपने जरुर सुना होगा
"वो पुछते हैं कि गालिब कौन है,
कोई बतलाए कि हम बतलाए क्या।"
यह बतलाने कि कोशिश मैंने कुछ इस तरह की;
कौन है गालिब ?
आशिक की वफा गालिब,
हुस्न की अदा गालिब,
मौहब्बत की गजल गालिब,
खामोशी की जुबाँ गालिब,
इश्क का सबक गालिब,
बेखुदी का सबब गालिब,
इकरार की हया गालिब,
इनकार की सजा गालिब,
महफिल की शमा गालिब,
तन्हाई की गुफ्तगु गालिब,
शायर का ख्याल गालिब,
सुखनवर का अंदाज गालिब,
मिलन की अरजू गालिब,
जुदाई का सरुर गालिब,
उस के दिल की बात गालिब,
मेरे दिल का राज गालिब,
और ज्यादा क्या कहूँ मैं
हम सबके दिल का हाल गालिब।
प्रवीण परिहार
5/7/06
पुकारता है घर मेरा
इतने दिनों तक घर से दुर रहने के बाद घर की बहुत याद आती है। घरवालें, दोस्त, त्यौहार सभी कुछ।सभी पुकार-पुकार कर यहीं कहते है "अब तो आजा"।
पुकारता है घर मेरा
कहता है अब तो आजा।
वो रास्ते वो हर गली,
वो हर दर, वो दरवाजा,
करते है सब तकाजा,
कहते हैं अब तो आजा।
फाल्गुन की देखो होली,
उडधंग मचाती टोली,
होली के सारे रंग,
सब दोस्तो के संग,
करते है सब तकाजा,
कहते हैं अब तो आजा।
प्यारी सी मेरी बहना,
उसका भी है ये कहना,
मेरे प्यारे भईया राजा,
इस राखी पे घर को आजा,
मेरी बहना और उसकी राखी,
दोनो करती है यूँ तकाजा,
कहती हैं अब तो आजा।
प्यारी सी मेरी मईयाँ,
बनाती है जब सैवईयाँ,
कहती है जल्दी आजा,
जल्दी से आ के खाजा,
वो खीर वो पताशा,
करते है सब तकाजा,
कहते हैं अब तो आजा।
मेरी भाँज़ी और भाँज़ें,
सब उडधंग में है साँज़े,
कहते है देखो - मामा,
जल्दी से घर को आना,
और तोहफे हमारे लाना,
वो सब मुस्कुराकर ऐसे,
करते है यूँ तकाजा,
कहते हैं अब तो आजा।
प्रवीण परिहार
1/7/06
यार मेरा मुझे भुल गया ?
(यह कविता, मैंने मेरे उस दोस्त के लिए लिखी थी, जिसका कई दिनो से कोई पत्र नही आया था, पर इस कविता ने अपना कमाल दिखाया और उसने फिर से पत्र लिखा।)
यार मेरा मुझे भुल गया ?
यार मेरा मुझे भुल गया
या याद उसे मैं हुँ अब भी,
कल तक था यारो में शामिल
क्या मैं शामिल हूँ अब भी।
मुद्ददत हुई उसने मुझको
इक बार भी खत् नही भेजा,
मेरा पता वो भुल गया
या याद उसे ये है अब भी।
मेरा यार मुझसे रूठ गया
या रूठा है रब तू मुझसे,
राह तकते मैं थक तो गया पर
उम्मीद इस दिल में है अब भी।
प्रवीण परिहार
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