आज अपने जन्मदिवस पर
याद मुझे आता है वो दिन
जब मैं इस जग में आया था
और पिता के हाथो से
घुट्टी का अमृत पाया था ।
मेरी माँ का स्पर्श मुझे
मन चाही राहत देता था
और मैं अपने भाई-बहन की
गोदी में झुला करता था ।
याद मुझे आती वो बुढीया
दस पैसे की उसकी पुढीया
दस पैसे की मछली भी थी
दस पैसे की थी इक गुडिया।
मेरे पिता की वो गहरी बातें
जो हर पल मुझको बतलाते थे
वो कुछ हल्के भारी शब्दों में
जीवन का रस मुझे समझाते थे ।
याद मुझे आते सब सहपाठी
जो खेल कूद में भी थे साथी
प्यार मौहब्बत झगडा भी था
पर मेरे वॊ थे सच्चे साथी ।
और याद मुझे आते वो खेल
थका नही जिन्हे खेल-खेळ
चोर-पुलिस, कंचे का खेल
और अँताक्षिरी में सही मेल।
और यूँहि कुछ वर्षो के बाद
कुछ संगी साथी बिछड गए
और यूँहि बस अंजाने में
कुछ ख्वाब अधूरे बिखर गये ।
कुछ साथी बिछुडे कुछ नये मिले
कुछ कबके बिछुडे आज मिले
कुछ साथी ऎसे भी बिछुडे
जो आज तलक भी नही मिले ।
कुछ साथी ऎसे भी बिछूडे जो
कभी नही अब मिल पायेगें
अपनी कुछ मिठी यादों से
याद मुझे वो सब आयेगें।
आज नये कई साथी है और
आज नये कई रिश्ते भी है
नया विश्वास है नये साथी का
अहसास नया है नये रिश्ते का।
हर साथी हर रिश्ते के साथ
मैं आगे जीवन यात्रा करता हूँ
और आज अपने जन्मदिवस पर
धन्यवाद मैं करता हूँ
धन्यवाद मैं करता हूँ ।
प्रवीण परिहार