लगता है मेरे घर में कोई और आ गया शायद,
तेरे दिल की धडकने कुछ अंजान सी लगती है।
हो सकता है कि ये मेरी भुल हो शायद,
पर आज तेरी ये नज़र कुछ बेईमान सी लगती है।।
तेरा जो दर्द मेरे दिल में है, सोचता हूँ उसकी दवा न करु,
तुझको तेरे जाने के बाद मैं खुद से यूँ जुदा न करु।
दुआ करना कि मैं मर जाऊँ एकदम,
तेरा नाम लेके यूँ खुदा- खुदा न करु।।
प्रवीण परिहार
13/3/07
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4 टिप्पणियां:
बहुत दिन बाद दिखे आज?
बढ़िया है.
नारद पर आपकी रचना नहीं दिखती...जरा यहाँ पर रजिस्टर करायें:
http://narad.akshargram.com/
धन्यवाद!
कैसे हैं प्रवीण, बढ़िया लगी तुम्हारी छोटी सी कविता
लगता है मेरे घर में कोई और आ गया शायद,
तेरे दिल की धडकने कुछ अंजान सी लगती है।
Sundar hai..!
Mere blog pe aane ka shukriya..! Your comments were very encouraging!
Shilpa
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