9/9/06

दुरियों के दरमियां




मैं यहाँ और तू वहाँ
ये दुरियों हैं दरमियां।
शुकरीयाँ इन दुरियों का,
तुम मिली जिन दरमियां।।

इन दुरियों के दरमियां,
मिलते है दिल को रास्ते।
और कभी मिलती है मंजिल,
उन रास्तों के दरमियां ।।

इन दुरियों के दरमियां,
तन्हाईयों का है बसर।
और बस तेरा खयाल,
इन तन्हाईयों के दरमियां।।

इन दुरियों के दरमियां,
मैं तेरे करीब आया सनम,
दिल ने तुझे पाया करीब,
इन दुरियों के दरमियां।।

इन दुरियों के दरमियां,
हर रोज मैं तुमसे मिला।
थे यहाँ बस तुम और मैं,
और कुछ नही था दरमियां।।

इन दुरियों के दरमियां,
जाग कर देखे है ख्वाब।
और मैं कभी सोया नही,
इन ख्वाबों के दरमियां।।

इन दुरियों के दरमियां,
भाँती नही महफिल मुझे।
कुछ खोया रहता हूँ मैं,
इन महफिलों के दरमियां।।

इन दुरियों के दरमियां,
दिल यूँ धडकता है मेरा।
नाम लेता है तेरा ये अब,
दो धडकनों के दरमियां।।

इन दुरियों के दरमियां,
तेरे ख्यालों का कारवाँ।
मैं देर तक चलता रहा,
इस कारवाँ के दरमियां।।

इन दुरियों के दरमियां,
मैं मूंद लू अपनी पलक।
और तुम यहाँ मौजूद हो,
इन दो पलक के दरमियां।।

इन दुरियों के दरमियां,
इक जरा सा दर्द भी।
और मिठी सी कशीश है,
इस दर्द के दरमियां।।

इन दुरियों के दरमियां,
दिल ने मिटाई ये दुरियां।
अब तो है अपनी मौहब्बत,
इन दो दिलों के दरमियां।।

अब जो अपने दरमियां,
ये दुरियों बस कहने को है।
देख हम हुए कितने करीब,
इन दुरियों के दरमियां।।


प्रवीण परिहार

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

"अब जो अपने दरमियां,
ये दुरियों बस कहने को है।
देख हम हुए कितने करीब,
इन दुरियों के दरमियां।।"

वाह, परिहार साहब. बहुत खुब. बड़ी शानदार बात कही है. बधाई.

-समीर लाल 'समीर'

अनूप भार्गव ने कहा…

इन दुरियों के दरमियां,
मैं मूंद लू अपनी पलक।
और तुम यहाँ मौजूद हो,
इन दो पलक के दरमियां।।
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सुन्दर खयाल है ....

बेनामी ने कहा…

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prash

प्रवीण परिहार ने कहा…

दिल-ए-तन्हा में अब एहसास-ए-महरूमी नहीं शायद
तिरी दूरी भी अब दिल के लिए दूरी नहीं शायद
~हबीब हैदराबादी